बहराइच: प्रदेश सरकार के निर्देश पर जिले में संचालित गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की जांच शुरू कर दी गई है। एटीएस (एंटी टेररिज्म स्क्वाड) द्वारा की जा रही इस जांच में 495 मदरसे शामिल हैं, जिनकी मान्यता नहीं है। इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अंधकारमय है क्योंकि इन संस्थाओं द्वारा जारी की गई मार्कशीट और प्रमाणपत्र की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।
नूरूल उल्मूम मदरसा 50 वर्षों से बिना मान्यता के चल रहा
इन मदरसों में से एक प्रमुख और विवादास्पद मदरसा है – नूरूल उल्मूम। यह मदरसा लगभग 50 वर्षों से बहराइच जिले के शहर क्षेत्र में संचालित हो रहा है, लेकिन अब तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था। यह मदरसा शहर के बीचों-बीच स्थित है, लेकिन इसके संचालन और मान्यता के बारे में किसी भी सरकारी अधिकारी की नजर अब तक नहीं पड़ी थी। अब जब एटीएस ने जांच शुरू की है, तो यह सवाल उठ रहा है कि इतने सालों तक इस मदरसे की गतिविधियों पर किसी ने ध्यान क्यों नहीं दिया।.
एटीएस द्वारा की जा रही जांच की दिशा
एटीएस के अधिकारी ने बताया कि पहले चरण में मदरसों का भौतिक सत्यापन किया जा रहा है। इसके बाद मदरसों में आने वाले फंड, शिक्षकों और छात्रों की संख्या और मध्यम-शिक्षा के लिए लागू किए गए नियमों की जांच की जाएगी। अधिकारी के अनुसार, एटीएस यह भी जांचेगा कि ये मदरसे कहां से वित्तीय मदद प्राप्त कर रहे हैं और क्या यह फंडिंग कानूनी प्रक्रिया से हो रही है या नहीं।
जांच में मदरसा संचालकों द्वारा दी गई जानकारी
जांच के दौरान मदरसा संचालकों से सभी आवश्यक जानकारी ली जा रही है। इसमें शामिल हैं – मदरसे में कितने शिक्षक कार्यरत हैं, छात्रों का नामांकन कहां से है, और क्या शिक्षक और छात्रों के नाम सही तरीके से रजिस्टर्ड हैं या नहीं। इसके साथ ही मदरसा के बैंक खातों की भी जांच की जाएगी, जिसमें यह देखा जाएगा कि मदरसा को मिलने वाला बजट कहां से आ रहा है और वह किस प्रकार से खर्च किया जा रहा है।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी की भूमिका
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय मिश्र ने बताया कि जिले में करीब 495 ऐसे मदरसे हैं, जिनकी कोई मान्यता नहीं है। इन मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य खतरे में है, क्योंकि इन मदरसों द्वारा जारी की गई मार्कशीट और प्रमाणपत्र को किसी भी शैक्षिक संस्थान या सरकारी नौकरी के लिए मान्यता प्राप्त नहीं है।
इस संदर्भ में, उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने एटीएस को एक सूची सौंपी है, जिसमें मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त मदरसों दोनों का उल्लेख किया गया है। इस सूची के आधार पर अब एटीएस को यह तय करना है कि कौन से मदरसे जांच के दायरे में आएंगे और कौन से मदरसे जांच से बाहर होंगे।
मदरसा संचालकों के लिए चुनौती
मदरसा संचालकों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है क्योंकि उन्हें एटीएस द्वारा की जा रही जांच प्रक्रिया के दौरान पूरी पारदर्शिता के साथ अपनी गतिविधियों को साबित करना होगा। मदरसा संचालकों का कहना है कि वे समाज की भलाई के लिए काम कर रहे हैं और छात्रों को धार्मिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, लेकिन अब सरकारी जांच के कारण उनकी संस्था की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं।
अल्पसंख्यक समाज पर असर
जिले में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या काफी बड़ी है, और इनमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या भी उल्लेखनीय है। यदि इन मदरसों की जांच के बाद कोई बड़ा कदम उठाया जाता है तो यह जिले के अल्पसंख्यक समाज के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। कई छात्र इन मदरसों में पढ़ाई करते हैं और भविष्य में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा के लिए इनकी मार्कशीट की कोई मान्यता नहीं हो सकती। इससे इन छात्रों के जीवन पर गहरा असर पड़ेगा।
शासन का निर्देश और सुरक्षा उपाय
प्रदेश सरकार ने यह आदेश दिया है कि सभी मदरसों की फंडिंग की जांच की जाए, और इसके लिए एटीएस को पूरी सुरक्षा दी जाए। बहराइच जिले के रूपईडीहा स्थित एटीएस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि सुरक्षा के दृष्टिकोण से स्थानीय पुलिस द्वारा एटीएस को पूरी सहयोग मिल रही है। उन्होंने कहा कि जांच का पहला चरण भौतिक सत्यापन तक ही सीमित है, और इसके बाद ही अन्य पहलुओं की जांच की जाएगी।
निष्कर्ष
बहराइच में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की जांच एक अहम कदम है, जो न केवल शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता को सुनिश्चित करेगा, बल्कि भविष्य में छात्रों के अधिकारों की रक्षा भी करेगा। हालांकि, इस जांच के दौरान उत्पन्न होने वाली असमंजस की स्थिति और संदेहों के बीच, एटीएस को सावधानीपूर्वक अपनी जांच प्रक्रिया पूरी करनी होगी ताकि किसी भी प्रकार की अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े।
यह मामला न केवल प्रशासनिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एक गंभीर चर्चा का विषय बन सकता है, विशेषकर धार्मिक शिक्षा और शिक्षा के अधिकार से जुड़ा हुआ है।