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दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के अंदर आबाद हैं कई गांव-

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के अंदर आबाद हैंकई गांव-
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के अंदर आबाद हैंकई गांव-

दुधवा टाइगर रिजर्व 2000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ वन क्षेत्र है इसमें जनपद खीरी के थारू जनजाति के गांव जो आज भी जंगल के अंदर ही बसे हुए हैं। थारू जनजाति के संबंध में अनेक मत हैं पर इन लोगों का कहना है कि हम राणा प्रताप के वंशज हैं इस लिये अपने नाम के पीछे राणा लिखते हैं।


क्षेत्र में बसा हुआ ‘गोलबोझी’ नामक एक गांव है यह दुधवा टाइगर रिजर्व के रेंज उत्तर सुनारीपुर के कोर जोन जोन में बसा हुआ है ग्राम गोलबोझी ग्राम पंचायत परसिया का मजरा है ।गोलबोझी की जनसंख्या लगभग 500 से अधिक है सबसे मुख्य बात यह है कि इस गांव में न कोई स्कूल है न बिजली है गांव में लगभग 85 परिवार रहते हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा के बच्चों को पास पड़ोस के स्कूलों में जाना पड़ता है ग्राम परसिया में स्कूल है जो गोलबोझी से 6 किलोमीटर की दूरी पर है तथा ग्राम बेला परसुवा में भी स्कूल है वह भी गोलबोझी से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां के कुछ बच्चे जनपद लखीमपुर खीरी में थारू जनजाति आवासीय विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करते हैं यह स्कूल समाज कल्याण विभाग द्वारा चलाए जाता है। इस गांव में आने जाने के लिए केवल जंगल होकर जंगल का रास्ता है। चारों ओर जंगल से घिरे गांव में न मोबाइल सेवा उपलब्ध है न प्रकाश की व्यवस्था है। गांव में प्रकाश व्यवस्था के लिए कुछ सशस्त्र सीमा बल ने तथा कुछ ग्राम पंचायत ने नेडा कंपनी से लगभग 25 सोलर लाइट लगवा दी है इससे गांव में प्रकाश रहता है । इस गांव में थारू जनजाति के ही परिवार रहते हैं चारों ओर जंगल बीच में बसे गोलबोझी के निवासियों से यह पूछे जाने पर कि यहां जंगली जानवरों का कोई खतरा तो नहीं है ग्राम वासियों ने बताया कोई खतरा नहीं है । इस ग्रामवासी लोगों का जीवन आज भी आधुनिकता से काफी पीछे पुराने जमाने के दौर में ही चल रहा है।


ग्राम ‘कीरतपुर’ जंगलों के बीच में बसा गौरीफंटा रेंज की कोर जोन में हैं। यह भारत-नेपाल सीमा पर आबाद है कीरतपुर सिंगहिया( सैड़ा बैड़ा) ग्राम पंचायत का मजरा है यहां की जनसंख्या लगभग 1000 है तथा अधिकांश निवासी कृषि कार्य पर आधारित है। यहां पर बच्चों की शिक्षा के लिए प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय भी है। यहां की कृषि भूमि काफी उपजाऊ है। थारू जनजाति से आबाद इस ग्राम में चार घर अनुसूचित जाति पासी समाज के हैं । भारत नेपाल सीमा से जुड़ा यह गांव काफी महत्वपूर्ण है। ‘दौदा’ नामक नदी भारत नेपाल सीमा का सीमांकन करती है और यह छोटी सी नदी जो कभी सूख जाती है तो भारत और नेपाल सीमा एक मे ही मिल जाती है। कीरतपुर में दुधवा ‍टाइगर रिजर्व की बन चौकी भी है यहां वायरलेस सिस्टम भी है ।स्वास्थ्य विभाग का उपकेंद्र कीरतपुर में है एएनएम स्वास्थ्य सेवा के लिए यहां आती जाती रहती हैं ।गांव में जाने के लिए जंगल के बीच से ही जंगल का रास्ता है जो वर्षाकाल में पानी के भराव के कारण लगभग बंद हो जाता है यहां के निवासी शिक्षा के लिए अपने कुछ बच्चों को बाहर भेजते हैं जो स्कूलों में पढ़ रहे हैं ग्रामीणों का शिक्षा के प्रति बहुत लगाव है। इस समय कीरतपुर गांव के ही 12 निवासी गण सरकारी सेवा में हैं।


दुधवा टाइगर रिजर्व के दुधवा रेंज के कोर जोन में बसा ग्राम ‘सूरमा’ ग्राम पंचायत है। इस ग्राम पंचायत में 5 मजरे हैं। इनमे भट्ठा, सिकलपुरवा ,सारभूसी, किशुनपुर व गोबरौला है। इनमें थारू जनजाति के परिवारों के निवासी ग्राम वासियों के पूर्वज लंबे समय से जंगल में आबाद है।

थारू जनजाति के लोग अपने को राणा प्रताप का वंशज बताते हैं।
गांव में पक्के मकान नहीं है छप्पर या टीनशेड है पर वनाधिकार कानून 2006 के तहत कुछ निवासियों ने अपना घर भी पक्का बना लिया है। कुछ लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना में भी घर मिल गए हैं ।थारू जनजाति से आबाद गांव में दो परिवार अनुसूचित पासी जाति के हैं वन विभाग ने सूरमा गांव के निवासियों को जंगल से अलग शिफ्ट करने की प्रक्रिया चलाई थी इसमें कुछ लोगों ने गांव छोड़ दिया और दूसरी जगह शिफ्ट हो गए गांव के कुछ लोग भट्टा गांव में जाकर बस गए कुछ सारभूसी में । यह गांव कृषि भूमि का गांव है सूरमा में प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूल है इनमें गांव के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं शिक्षा प्राप्त करने में बच्चे काफी आगे हैं । गांव जंगल से कब हट पाएगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता गांव में मोबाइल फोन नेटवर्क की सेवा उपलब्ध नहीं है गांव तक आने-जाने के कच्चे रास्ते हैं इन्हें वर्षा के दिनों में आवागमन में भारी कठिनाई होती है ग्रामीणों ने बताया कि हम लोगों को वन विभाग कर्मी व जंगली जानवर परेशान करते रहते हैं । गांव में जिन लोगों के पास राशन कार्ड है उनको सौभाग्य योजना के तहत सोलर पैनल एवं पंखा शासन द्वारा प्रदत्त किए गए हैं। जिनसे कुछ लोगों को प्रकाश एवं हवा मिल सकती है पर इन गांवों में रहना और वहां के आवागमन जंगल के बीच से है जिसमें हर समय खतरा ही खतरा है। जंगल में बाघ ,तेंदुआ ,हाथी ,भालू अदि जानवर वअनेक प्रकार के सांप आदि भी इन सभी गांव वासियों के लिए बहुत ही खतरनाक है पर यह ग्रामवासी गांव से हटना भी नहीं चाहते हैं इनकी अलग ही विचार अलग ही सोच और अलग ही दुनिया है।


ओम प्रकाश 'सुमन ' पूर्व प्रवक्ता स्मृति महाविद्यालय ,भीरा लखीमपुर खीरी

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