गोपेश्वर। वन पंचायत सरपंच संगठन ने हाल ही में राज्य के वन मंत्री की बैठक में चर्चा में आए वन पंचायतों को ग्राम प्रधानों को सौंपने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। संगठन के संरक्षक बहादूर सिंह रावत ने इस संदर्भ में एक बयान जारी कर कहा कि यह प्रस्ताव न केवल वन पंचायतों के अस्तित्व को खतरे में डालता है, बल्कि इसे समाप्त करने की एक सुनियोजित साजिश के तहत लाया गया है।
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रावत ने बताया कि 2001 में वन पंचायतों का नियंत्रण राजस्व विभाग से वन विभाग को सौंपा गया था, लेकिन तब से वन विभाग सरपंचों के साथ तालमेल स्थापित करने में असफल रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि यह असफलता वन पंचायतों के पारंपरिक वनाधिकारों को समझने में भी रुकावट पैदा कर रही है। उन्होंने कहा कि वन विभाग ने इस दौरान चार बार वन पंचायत नियमावली में संशोधन किया है, और हाल ही में 2024 में शहरी क्षेत्रों की वन पंचायतों को नगर निकायों के अधीन कर दिया गया है।
रावत ने इस प्रस्ताव को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा कि 11,000 से अधिक वन पंचायतों को ग्राम पंचायतों के अधीन करने का यह कदम वन प्रबंधन को सरकारी नियंत्रण में कसने की एक रणनीति का हिस्सा है।
संगठन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि सरकार अपने इस निर्णय को वापस नहीं लेती है, तो इसका पुरजोर विरोध किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि अक्टूबर माह में होने वाली बैठक में आगे की रणनीति तय की जाएगी और आंदोलन की योजना बनाई जाएगी। संगठन का यह कदम वन पंचायतों के अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।
इस प्रकार, वन पंचायत सरपंच संगठन ने अपने आंदोलन की तैयारी शुरू कर दी है, जो वन विभाग की नीतियों के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाने का संकेत देती है। यह आंदोलन न केवल वन पंचायतों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि यह समुदायों के बीच भी जागरूकता बढ़ाने में सहायक साबित होगा।