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हिंदी भाषा- साहित्य का वैश्विक आकाश।विश्व में हिंदी के साथ व्यवसायिकता की जुगलबंदीl

(14 सितंबर हिंदी दिवस)

हिंदी भाषा करोड़ों भारतीय के दिलों में बसी हुई भाषा है। हिंदी को भारतीय संघ की राजभाषा होने का गौरव प्राप्त है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहां भी है “राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है” हिंदी की सार्वभौमिक स्वीकार्यता के कारण ही भारतीय राजनेताओं ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया था। उल्लेखनीय है कि हिंदी भाषा विदेशों में जितनी फल फूल रही है बल्कि हिंदी बोलने वाले भारतवंशी कई देशों के राष्ट्र प्रमुख भी हैं जैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन, पुर्तगाल के एंटोनियो कोष्टा प्रधानमंत्री, श्री इरफान गुयाना के राष्ट्रपति, सुरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी, और सेसिल के राष्ट्रपति रामखेलावन पदस्थ हैं। इन देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के अलावा अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी हिंदी के विस्तार का बड़ा माध्यम बना हुआ है।

हिंदी मूलतः बड़ी विशाल एवं  आसानी से बोली जाने वाली, लिखी जाने वाली भाषा है। भारत की भौगोलिक विशालता और विविधता के बावजूद हिंदी सर्व स्वीकार्य और देश की सर्व सम्मत भाषा है। यह अलग बात है कि अभी तक संवैधानिक रूप से इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो पाया है। स्वतंत्रता आंदोलन के समय आंदोलनकारियों ने यह महसूस किया की एकमात्र हिंदी भाषा ही ऐसी भाषा है जो दक्षिण के कुछ क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश की संपर्क भाषा है। भारत के संविधान में कुल 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। पर हिंदी भाषा ही एक ऐसी भाषा है जो भारत में विभिन्न भाषा भाषाई नागरिकों के मध्य विचार विनिमय और संपर्क के लिए एक बड़ा सहारा है।

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हिंदी के विशाल स्वरूप को मद्दे नजर रख पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने भी कहा “हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का या भाषा का बहिष्कार नहीं किया” यह शब्द हिंदी की पवित्रता और व्यापकता को इंगित करते हैं। वर्तमान परिस्थितियों एवं समय काल मैं पूरे विश्व में 45 करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने वाली भाषा है। इसकी सरलता एवं सहजता विश्व के लोगों को अत्यंत प्रभावित भी करती है। हिंदी के विद्वानों,शिक्षाविदों, लेखकों, रचनाकारों और युवा लेखकों द्वारा हिंदी को वैश्विक पहचान दिलाने में अहम भूमिका भी निभाई है। कई नामचीन विद्वान लेखक जिन्होंने हिंदी को वैश्विक भाषाई शिखर पर पहुंचाया है। इसी अनुक्रम में 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमतेन हिंदी को भारत की राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का निर्णय भी लिया गया था। और हिंदी दिवस मनाने का एकमात्र उद्देश्य राजकीय कार्यालयों इसके व्यापक प्रचार प्रसार एवं पत्राचार में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने की  ही है। हिंदी भाषा को पूरे विश्व में द्वितीय भाषा के रूप में माना जाता है। हिंदी नए वैश्विक स्तर पर अपने चलन के कारण अंग्रेजी भाषा को भी काफी पीछे छोड़ दिया है।

आज हिंदी भाषा का कंप्यूटर,इंटरनेट ई बुक, सोशल मीडिया, विज्ञापन, टेलीविजन रेडियो आदि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है। भारत की विशाल जनसंख्या विदेशी व्यापारियों के लिए एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है। यही कारण है कि विदेशी कंपनियां अपने सभी विज्ञापनों एवं सामानों में हिंदी भाषा का उपयोग कर भारतीय जनमानस को अपने उत्पादों के प्रति आकर्षित करना चाहती है।यही वजह है कि हिंदी का व्यापक प्रचार-प्रसार भी इसी माध्यम से हो रहा है। विदेशों में भारतीय फिल्मों ने भी हिंदी का बड़ा और वृहद प्रचार प्रसार किया है। ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, रूस मैं निवासरत भारतीय लोग हिंदी के प्रचार में निरंतर लगे हुए हैं। वहां हिंदी बोली तथा समझी जाती है।


एनी बेसेंट ने सत्य कहा है  कि भारत के विभिन्न प्रांतों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में जो भाषा सबसे प्रभावशाली बन कर सामने आती है वह है हिंदी, जो हिंदी जानता है पूरे भारत की यात्रा कर हिंदी बोलने वाला से हर तरह की जानकारी प्राप्त कर सकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भी अपने सामानों को बेचने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग करना पड़ रहा है। भारत में कुछ काले अंग्रेज लोग जो सिर्फ महानगरों में अंग्रेजी को ही महत्त्व देते हैं, उन्हें इस बात को समझ जाना चाहिए की भविष्य में हिंदी का भविष्य वैश्विक स्तर पर उज्जवल है। और उन्हें हिंदी भाषा बोलने में शर्म नहीं आनी चाहिए। अंग्रेजी भाषा एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है वह जरूर बड़ी कंपनियों मैं विदेश में नौकरी दिलाने का माध्यम बन सकती है, पर हिंदी देश का गौरव और नागरिकों की आत्माओं में बसी एक पवित्र धारा है ।अंग्रेजी भाषा रोजगार मूलक जरूर हो सकती है, पर केवल इसी कारण हिंदी की अवहेलना और उपेक्षा किसी भी स्तर पर तर्कसंगत नहीं है। भारतीयों को हिंदी के आत्म गौरव को विस्मृत नहीं करना चाहिए। हिंदी देश को भावनात्मक एकता के सूत्र में बांधे में सक्षम भारत की एकमात्र सशक्त भाषा है। हिंदी की गहराई तथा विशालता किसी बात से इंगित होती है कि भारतीय ग्रंथों और बड़े मूर्धन्य लेखकों की किताबों का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओं में किया गया है । और हिंदी की रामायण गीता रामचरितमानस वैश्विक स्तर पर पढ़ी जाती है। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर शीर्ष में सम्मान देने की आवश्यकता है।


भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने हिंदी की प्रगति के लिए कुछ पंक्तियां कही है जो आज भी उल्लेखनीय है,
“निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल,
बृज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को शूल।
जय हिंदी जय हिंदुस्तान
हिंदी भाषा अमर रहे।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार, चिंतक,लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़

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